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कविता

हर आदमी मुस्कुराता है अपने फोटो में

विशाल श्रीवास्तव


हर आदमी मुस्कुराता है अपने फोटो में
पता नहीं क्यों मुस्कुराता है हर आदमी
क्या सिर्फ ‘स्माइल प्लीज’ के जुमले की वजह से
या इस कारण कि मुस्कुराने में इस्तेमाल होती हैं
नाराजगी से थोड़ी कम मांसपेशियाँ
वैसे तो मुस्कुराहटों से पटी पड़ी है हमारी दुनिया
एक अधिनायक लगभग रोज मुस्कुराता है 
अपने भव्य सफेद घर के सामने
और ऐसा वह तब करता है जब वह 
अपने युद्धों और सैनिक कार्यवाहियों के बारे 
दुनिया को देता है तफसील
एक दूसरे देश का जिम्मेदार आदमी
मुस्कुराते हुए करता है दोस्ती की पेशकश
कहते हैं उसे मुस्कुराने में काफी मेहनत लगती है
हमारे देश में भी एक महानायक लगभग रोज
मुस्कुराता रहता है तमाम चैनलों पर
लोगों को अमीर बनने के सपने दिखाता रहता है
यह युवा क्रुद्ध आदमी कभी पहना करता था
पसीने से भीगी हुई लाल बुशशर्ट
खेलों का एक चैंपियन भी मुस्कुराते हुए
तरह-तरह की चीजें बेचता रहता है
विश्वसुंदरियाँ मुस्कुराती हैं प्रतिक्षण
अपनी आने वाली हर साँस के साथ
(जिसे वह पूरी शाइस्तगी से लेती हैं)
 
मैं देखना चाहता हूँ इन लोगों को 
जब ये मुस्कुरा न रहे हों
या हो सकता है उनका ऐसा कोई चेहरा ही न हो
वैसे हम सभी मुस्कुराते रहते हैं अपने-अपने ढंग से
अनचाहे आदमी के सामने भी कुशलता से मुस्कुराते हैं
अपना दुख ढाँकना हमें भला लगता है
अब तो मृत्यु पर भी सोच समझकर रोते हैं लोग
कुछ तो ऐसे मौकों पर बाकायदा मुस्कुराते भी हैं
 
कितना भी हो संताप
कितना भी हो दुख
कितना भी हो क्षरण
पता नहीं क्या कारण है कि
हर आदमी मुस्कुराता है अपने फोटो में।
 

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